पंजाब का ऐसा शहर जो पाकिस्तान के बाॅर्डर से लगा हुआ है। ये शहर जितना अपनी संस्कृति के लिए फेमस है उतना ही फेमस यहां का कल्चर और खाना पीना है। हम बात कर रहे हैं पंजाब के सबसे पवित्र शहर अमृतसर की जो करीब 450 सालों से अस्तित्व में है।
अमृतसर आने के लिए आपको इंडिया ही नहीं बल्कि दुनिया के कई और शहरों से फ्लाइट मिल जाएगी। बर्मिंघम, दुबई, दोहा, ताशकंद सहित इंडिया के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बंगलुरू और श्रीनगर से यहां पर फ्लाइट आती जाती है। अमृतसर का श्री गुरू रामदास जी इंटरनेशनल एयरपोर्ट शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर है। ट्रेन से भी अमृतसर पूरे इंडिया से जुड़ा हुआ है। अगर रोड से अमृतसर जाना चाहे तो दिल्ली - सोनीपत - पानीपत - करनाल - कुरूक्षेत्र - अंबाला होते हुए पंजाब में एंट्री कर सकते हैं और अंबाला से सरहिंद - खन्ना - लुधियाना - जालंधर - व्यास जी होते हुए अमृतसर पहुंचा जा सकता है।
इंडिया
में आगरा के ताजमहल को देखने के बाद सबसे ज्यादा टूरिस्ट अमृतसर ही जाते हैं। यहां पर पंजाबी कल्चर, फूड के साथ साथ देखने के लिए भी इतना कुछ है कि ये जगह सभी को काफी पसंद आती है।
यहां पर रूकने के लिए 5 स्टार होटल से लेकर सभी बजट के होटल हैं। अमृतसर आने वाले चाहे तो गोल्डन टेंपल के यात्री निवास में भी रूक सकते हैं।
टीम देखो दुनिया देखो अब आपको बता रही है कि अमृतसर में देखने के लिए क्या क्या है।
गोल्डन टेंपल
अमृतसर
में सबसे पहले देखने के लिए वहां का सबसे पवित्र स्थान है गोल्डन टेंपल। इसे स्वर्ण मंदिर, हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब के नाम से भी जानते हैं। 500 बीघा गुरूदारे में इसकी नींव रखी थी और यह गुरूदारा एक सरोवर के बीच में बना हुआ है। पूरा मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है और दीवारों पर सोने की परत चढ़ाई गई है। मंदिर की वास्तुकला हिंदू, मुस्लिम निमार्ण कार्य के बीच अनोखे सौहार्द को दिखाती है। 19 वीं शताब्दी में पंजाब के फेमस महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरूदारे की उपरी छत को 400 किलो सोने से ढक दिया था जिसके बाद ही इसका नाम गोल्डन टेंपल पड़ा। मंदिर में 4 प्रवेश दार है जो मानवीय भाईचारे को दिखाते हैं। मंदिर में कई दीवारों पर भारतीय सेना के शहीद सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं जो भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1971 में हुई लड़ाई में शहीद हो गए थे। मंदिर में आकर दर्शन करना और गुरू के लंगर में लंगर खाना अद्भुत अहसास देता है।
जलियांवाला बाग
गोल्डन
टेंपल से बाहर निकलते ही बाजार में थोड़ा आगे चलते ही जलियांवाला बाग है। ये बाग भी इंडिया की आजादी में अहम योगदान रखता है। बाजार से बाग में जाने के लिए छोटी सी गली है जिसमें से जलियांवाला बाग देखने जाया जा सकता है। इस बाग में 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश आर्मी के ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाॅल्ड डायर ने सैकड़ों महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों की हत्या कर दी थी और इसी घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था। जनरल डायर पहले छोटी सी गली से अपने सैनिकों के साथ बाग में घुसा और सैनिकों को फायर करने का आदेश दिया जिसके बाद सैनिकों ने सिर्फ 10 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलाई जिसमें 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और करीब 1000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। उस समय कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए बाग में ही मौजूद कुएं में कूद गए थे जिसमें से बाद में उनके शव निकाले गए। बाग में अंदर जाने पर हमें गैलरी मिलती है जहां उस समय की कुछ यादों को सहेज कर रखा गया है। गैलरी के पास ही वो कुआं है जिसमें जान बचाने के लिए लोग कूदे थे लेकिन अब कुएं को ढक दिया गया है और बाग में दूसरी तरफ कुछ दीवारें हैं जिनपर उस समय चली गोलियों के निशान हैं। पूरे बाग को देखकर ऐसा लगता है कि हम भी उस समय में पहुंच गए हैं जब ये घटना हुई थी। ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ ने भी इस जगह आकर शहीदों को श्रृदाजंलि दी थी और ब्रिटेन के पीएम रहे डेविड कैमराॅन भी इस जगह आ चुके हैं और उन्होंने यहां की विजिटर्स बुक में लिखा था कि ये ब्रिटिश इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना थी।
बाघा बार्डर
अमृतसर
से करीब 28-30 किलोमीटर दूर है बाघा बार्डर। यहां पर इंडिया और पाकिस्तान का बार्डर है और ये जगह दोनों ही देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। 14 अगस्त और 15 अगस्त को यहां पर शांति के लिए जागरण किया जाता है क्योंकि 14 अगस्त 1947 के दिन ब्रिटिशर्स ने पाकिस्तान को रात में आजाद किया था और 15 अगस्त 1947 की सुबह इंडिया को आजादी मिली थी और इसी समय पर दोनों देशों के लोगों को आपस में मिलने की परमिशन दी जाती है। बाघा बार्डर पर रोज शाम को करीब साढ़े 5 बजे इंडिया की तरफ से सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान की तरफ से पाकिस्तानी रेंजर्स की टुकडि़यां फ्लैग सेरेमनी करती है जिसमें दोनों देशों के झंडों को उतार कर रखा जाता है। सेरेमनी को देखने के लिए बार्डर के दोनों तरफ काफी भीड़ होती है और दोनों ही तरफ देशभक्ति के गीत चलाए जाते हैं जिससे माहौल में देशभक्ति की भावना बहुत ज्यादा हो जाती है। सेरेमनी देखने के लिए आने वाले लोगों की पूरी तरह चैकिंग करने के बाद ही वहां भेजा जाता है और सिगरेट, लाइटर, माचिस, चाकू, कास्मैटिक आइटम्स, बड़े बैग लाने की मनाही है।
दुर्गयाना मंदिर
अमृतसर
के हाथी गेट पर प्राचीन हिंदू मंदिर है जिसे दुर्गयाना मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को भी गोल्डन टेंपल की तरह ही बनाया गया है। मंदिर के सेंटर में सोने की परत चढ़ा हुआ गर्भ गृह है और इसके ठीक पीछे हनुमान मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ किया तो यहीं पर भगवान हनुमान लव-कुश से वो घोड़ा लेने आए थे और उन दोनों ने भगवान हनुमान को यहीं पर हराया था।
खरउद्दनी मस्जिद
ये मस्जिद गांधी गेट के पास हाल बाजार में है। सही तरीके से की गई देखभाल के कारण मस्जिद आज भी काफी अच्छी हालत में है। ये मस्जिद इस्लाम कला की बेहद अच्छी तस्वीर दिखाती है और नमाज के समय यहां पर काफी भीड़ होती है।
क्या खाएं
अमृतसर
आएं और यहां का खाना ना खाएं ऐसा हो ही नहीं सकता। अमृतसर अपने इतिहास के साथ साथ खाने के लिए भी काफी फेमस है। यहां बनी मक्के की रोटी, सरसों का साग, अमृतसरी कुल्चे, चिकन, लस्सी वल्र्ड फेमस है। खाने पीने के शौकीन लोगों के लिए यहां हर तरह की वैराइटी मिल जाएगी जो शायद ही दुनिया में कहीं और मिले।
क्या शापिंग करें
अमृतसर
आकर पंजाबी सूट, कुर्ते, पगड़ी, सलवार कमीज, रूमाल, जूतियां, जूलरी, अचार और पापड़ खरीदा जा सकता है। इसके लिए पुराने शहर में हाल बाजार और कोतवाली इलाके में परंपरागत बाजार है। साथ ही गोल्डन टेंपल के पास बनी दुकानों से स्टील के बर्तन और कृपाण, तलवारें खरीदी जा सकती हैं।
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